श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र वेदी
श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में, भगवान श्री आदिनाथ जी की वेदी के ठीक सामने और मंदिर प्रवेश द्वार के बाईं ओर, बारहवें तीर्थंकर भगवान श्री १००८ वासुपूज्य जिनेन्द्र जी एक मध्यम आकार की दिव्य वेदी में विराजमान हैं। यह स्थान भक्तों को आत्म-संयम और वैराग्य की विशेष प्रेरणा प्रदान करता है।
भगवान वासुपूज्य का महत्व: प्रथम बाल-यति तीर्थंकर
भगवान वासुपूज्य का जैन धर्म में एक अत्यंत विशिष्ट स्थान है क्योंकि वे पंच बाल-यतियों में प्रथम हैं।
बाल-यति या बाल-ब्रह्मचारी वे तीर्थंकर हैं जिन्होंने विवाह या राज-पाठ का सुख भोगे बिना ही, युवावस्था में ही संसार से विरक्त होकर जैनेश्वरी दीक्षा धारण की और घोर तपस्या करके मोक्ष को प्राप्त किया। भगवान वासुपूज्य इन पाँच महान आत्माओं में सबसे पहले थे, जो उनके परम वैराग्य को दर्शाता है।
पूजा-अर्चना का फल
भगवान वासुपूज्य की भक्ति और पूजन करने से भक्तों का मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। इसके साथ ही, उनकी वीतरागी और शांत मुद्रा के दर्शन से श्रद्धालु सभी प्रकार के सांसारिक झंझटों और बाधाओं से मुक्त होने की आत्मिक शक्ति और शांति प्राप्त करते हैं।