अतिशयकारी श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र: करुणा एवं कल्याण के मूल स्रोत
श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में प्रवेश करने पर, दाईं ओर स्थित मूल वेदी पर विराजमान अतिशयकारी भगवान श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र की प्राचीन एवं चमत्कारी प्रतिमा भक्तों को दिव्य शांति एवं आनंद से भर देती है। श्वेत पाषाण (सफेद पत्थर) में निर्मित यह मनोहारी प्रतिमा, भगवान पार्श्वनाथ को धरणेन्द्र देव के फणों (सर्प छत्र) से सहित पद्मासन मुद्रा में दर्शाती है।
तपस्या, उपसर्ग विजय और केवलज्ञान की प्रतिमा
यह प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ के उस पावन काल की स्मृति दिलाती है जब उन्होंने घोर तपस्या करते हुए अनेक उपसर्गों पर विजय प्राप्त की और अंततः केवलज्ञान को प्राप्त किया। इसलिए, यह जिन बिम्ब अरिहंत परमेष्ठी की अवस्था का प्रतीक है, जो समस्त कर्मों को जीतकर लोक कल्याण के लिए विराजमान हैं।
देवों द्वारा आराधना एवं देवकृत अतिशय
इस पवित्र भूमि पर स्थानीय लोगों ने प्राचीन काल से ही मंदिर जी में अनेक अतिशय (चमत्कार) होते हुए देखे हैं। विशेष रूप से, पिछले ४०-४५ वर्षों में यहाँ ऐसे अनेक चमत्कार हुए हैं, जिनके प्रभाव से अनगिनत लोगों ने अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव किया है।
इन साक्षात चमत्कारों और प्राप्त हुई देव-वाणी के आधार पर, श्रद्धालुओं का यह दृढ़ विश्वास है कि यदि भगवान पार्श्वनाथ के रक्षक देव श्री धरणेन्द्र और पद्मावती, असंख्य अन्य देवी-देवताओं सहित आज भी यहाँ विश्व कल्याण के महान उद्देश्य से उपस्थित रहते हैं, तो जानकार एवं श्रद्धालु जनों के लिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
यह भगवान पार्श्वनाथ का इस दुर्लभ पंचम काल में हम सभी पर करुणापूर्ण आशीर्वाद है कि देवों की वाणी पूज्य चाचा जी के माध्यम से हमें प्राप्त होती है, जो हमें विश्व कल्याण के निमित्त उनकी भक्ति और मार्गदर्शन पर चलने का मार्ग दिखाती है। इसी कृपा के फलस्वरूप, टोड़ी जी में अनन्य भक्ति भाव से विश्व कल्याण के लिए उनके मार्गदर्शन पर चलने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है।
यह स्थान भगवान पार्श्वनाथ की करुणा और देवों की भक्ति का संगम है, जहाँ आने वाले हर श्रद्धालु को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है।