मानस्तंभ: विनय और पहचान का प्रतीक

श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र, टोड़ी जी के पावन परिसर में प्रवेश करते ही भक्तों का स्वागत एक भव्य एवं उत्तुंग मानस्तंभ करता है। जैन परंपरा के अनुसार, मानस्तंभ वह स्तंभ है जिसके दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं का मान (अहंकार) गलित हो जाता है और वे विनय भाव से भरकर ही जिनालय में प्रवेश करते हैं।

मानस्तंभ की अद्वितीय स्थिति एवं विशेषता

 

इस मानस्तंभ की सबसे बड़ी विशेषता इसकी अद्वितीय ज्यामितीय स्थिति (geometrical position) है। यह तीर्थ क्षेत्र के दोनों मुख्य मंदिरों के साथ इस प्रकार समकोण (right angle) पर स्थित है कि यह अकेला ही दोनों जिनालयों के लिए विनय और पवित्रता का प्रवेश द्वार बन जाता है।

यह एक ही मानस्तंभ, दोनों मंदिर रूपी समवशरणों में प्रवेश करने वाले यात्रियों के मान को गलाने का कार्य करता है। साथ ही, यह स्तंभ दूर से ही मंदिर परिसर की पहचान बनकर भक्तों को इस पावन भूमि की ओर आकर्षित करता है।

 

संरचना एवं प्रतीकवाद (Structure and Symbolism)

 

  • जिनेंद्र प्रतिमाएं: मानस्तंभ के शिखर पर चारों दिशाओं में वीतरागी जिनेंद्र भगवान की शांत मुद्रा वाली प्रतिमाएं विराजमान हैं, जो भक्तों को सम्यक दर्शन का संदेश देती हैं।

  • ऐरावत हाथी: इसी परिसर में देवलोक के ऐरावत हाथी की प्रतिकृति भी स्थापित है। शास्त्रों के अनुसार, यह वही दिव्य हाथी है जिसका उपयोग सौधर्म इंद्र, तीर्थंकर बालक को जन्माभिषेक के पुण्य अवसर पर सुमेरु पर्वत तक ले जाने के लिए करते हैं। यह प्रतिमा उस मंगलकारी क्षण का स्मरण कराती है।

  • लघु जिनालय: मानस्तंभ के समीप ही एक छोटा, सुंदर मंदिर भी स्थित है, जो इस परिसर की दिव्यता को और बढ़ाता है।

अतः, मंदिर में प्रवेश से पूर्व इस मानस्तंभ के दर्शन करना प्रत्येक श्रद्धालु के लिए आवश्यक है, ताकि वे अपने अहंकार को त्याग कर शुद्ध और निर्मल मन से प्रभु की भक्ति और दर्शन का पुण्य लाभ ले सकें।