श्री 1008 पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र टोड़ी जी: क्षेत्र परिचय
प्राचीन काल से जिनमंदिरों में देवकृत अतिशय विद्यमान रहे हैं, किंतु वर्तमान की दोषपूर्ण चर्या और आध्यात्मिक विस्मृति के कारण वे लगभग लुप्त हो चुके हैं। ऐसे युग में टोडी फतेहपुर एक अद्भुत तीर्थ है, जहाँ आज भी देवकृत अतिशय प्रत्यक्ष रूप में अनुभव किए जाते हैं।
बुंदेलखंड की पावन भूमि पर स्थित, श्री १००८ पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र, टोड़ी जी (फतेहपुर, झाँसी उ. प्र.), एक प्राचीन एवं जीवंत जैन तीर्थ है। यह मात्र ईंट-पत्थर से निर्मित एक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, चमत्कार और आत्म-कल्याण का एक ऐसा संगम है, जहाँ प्राचीन काल से ही २३वें तीर्थंकर, श्री १००८ भगवान पार्श्वनाथ जी की कृपा-स्वरूप साक्षात अतिशय विद्यमान है। यह क्षेत्र वीतरागी साधना, निर्मल श्रद्धा और जिनवाणी श्रवण का पवित्र केन्द्र है, जो श्रद्धालुओं को सदाचारी एवं ज्ञानसंपन्न जीवन की ओर प्रेरित करता है ।
तीर्थ का महात्म्य: श्रावक धर्म की पाठशाला
यह पवित्र भूमि उन सभी गृहस्थों के लिए एक खुली पाठशाला है जो श्रावक धर्म का निर्दोष पालन सीखकर अपने जीवन का कल्याण करना चाहते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु भगवान पार्श्वनाथ की असीम कृपा और देवों के मार्गदर्शन से सीखते हैं कि सांसारिक उत्तरदायित्वों को निभाते हुए भी धर्म के मार्ग पर कैसे चला जाए।
इस तीर्थ की ऊर्जा से भक्तजन अपनी सांसारिक आधि-व्याधि (मानसिक एवं शारीरिक कष्टों) से मुक्त होकर मोक्ष मार्ग के लिए सबसे आवश्यक सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान को प्राप्त करते हैं। यहाँ तीर्थंकरों की भक्ति से एक आदर्श एवं संतुलित गृहस्थ जीवन जीने का दिव्य उपदेश स्वतः ही प्राप्त होता है।
वर्तमान में देवों का मार्गदर्शन: आदरणीय चाचा जी
इस तीर्थ की चमत्कारिक और कल्याणकारी ऊर्जा आज भी जीवंत है, जिसका साक्षात माध्यम श्री मिलाप चंद्र जैन जी हैं, जिन्हें सभी श्रद्धालु अत्यंत श्रद्धा और स्नेह से “चाचा जी” कहकर संबोधित करते हैं। विश्व कल्याण की भावना से, उन्हें आज भी देवों द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की जाती है, जिससे वे अनगिनत लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
मासिक समवशरण सभा
तीर्थ क्षेत्र पर भक्तों की समस्याओं के समाधान हेतु एक समवशरण सभा अर्थात “दिव्य धर्म सभा” का आयोजन प्रत्येक माह किया जाता है। यह धर्म सभा हर महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी (१२) से प्रारम्भ होकर, आगामी शुक्ल पक्ष की द्वितीया (दोज) तक चलती है।
इस सभा में देश-विदेश से श्रद्धालु आकर अपनी सांसारिक और पारलौकिक, हर प्रकार की समस्याओं का समाधान प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में शांति, समृद्धि और संतोष का अनुभव करते हैं।
मंदिर परिसर एवं दर्शनीय स्थल
श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र, टोड़ी जी का परिसर आस्था और भक्ति की जीवंत ऊर्जा से परिपूर्ण है। यहाँ स्थित जिनालय और अन्य पवित्र रचनाएँ भक्तों को असीम शांति और पुण्य का अनुभव कराती हैं।
मुख्य जिनालय (Main Temples)
📍 क्षेत्र की विशेषता
इस क्षेत्र में दो प्राचीन जिनमंदिर स्थित हैं, जो पारंपरिक जैन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ये मंदिर आध्यात्मिक शांति से परिपूर्ण हैं तथा अत्यंत मनोहर प्रतीत होते हैं।
🛕 मुख्य वेदियाँ एवं मूलनायक तीर्थंकर
- पहली वेदी में भगवान पार्श्वनाथ स्वामी मूलनायक रूप में विराजमान हैं।
- दूसरी वेदी में भगवान आदिनाथ स्वामी मूलनायक हैं।
- तीसरी वेदी में भगवान वासुपूज्य स्वामी मूलनायक हैं।
- चौथी वेदी में भगवान पद्मप्रभनाथ स्वामी मूलनायक हैं।
- अतिरिक्त एक वेदी में भी भगवान पार्श्वनाथ स्वामी मूलनायक स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं।
🙏 इन वेदियों में अनेक प्राचीन जिनबिंब प्रतिष्ठित हैं, जिनमें से दस प्रतिमाएँ अति प्राचीन प्रतीत होती हैं, क्योंकि उनके नीचे कोई प्रशस्तिवाक्य उत्कीर्ण नहीं हैं
परिसर के अन्य प्रमुख आकर्षण
मंदिरों के साथ-आथ, यह तीर्थ क्षेत्र कई अन्य भव्य रचनाओं से भी सुसज्जित है, जो जैन धर्म की महिमा और सिद्धांतों को दर्शाते हैं:
तीर्थंकर चौबीसी: यहाँ एक ही स्थान पर सभी २४ तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।
विशाल बाहुबली प्रतिमा: त्याग और आत्म-विजय के प्रतीक, भगवान बाहुबली की एक विशाल और भव्य प्रतिमा जो मन में वैराग्य का भाव जगाती है।
समवशरण रचना: तीर्थंकरों की दिव्य उपदेश स्थली “समवशरण” की एक सुंदर प्रतिकृति, जिसके दर्शन मात्र से आत्मिक शांति का अनुभव होता है।
नंदीश्वर द्वीप रचना: जैन ब्रह्मांड विज्ञान में वर्णित शाश्वत नंदीश्वर द्वीप की मनोहारी रचना, जहाँ देवगण निरंतर जिनेन्द्र भगवान की आराधना करते हैं।
सहस्रकूट जिनालय: एक अद्वितीय जिनालय जिसमें एक हजार (१०००) जिन प्रतिमाएँ विराजमान हैं, जो भक्तों को एक साथ सहस्र भगवंतों की वंदना का अवसर प्रदान करता है।
- पंच श्रुतकेवली: देशभर में दुर्लभ पाँच श्रुतकेवलियों के बिम्ब भी यहाँ स्थापित किए गए हैं।
- मानस्तंभ: मंदिर के बाहर स्थित भव्य एवं उत्कीर्णित मानस्तंभ, जिसके दर्शन करने से श्रद्धालुओं का अभिमान (मान) गलित हो जाता है और वे विनय भाव से मंदिर में प्रवेश करते हैं।
यह सभी जिनालय और रचनाएँ मिलकर इस क्षेत्र को एक पूर्ण और जाग्रत तीर्थ बनाती हैं, जहाँ हर कोने में भक्ति और शांति का वास है।
यहाँ पर यात्रियों के ठहरने के लिए २ धर्मशालाएं, एक विशाल सभागार सहित संत जनों के ठहरने योग्य वीतराग भवन, भोजनशाला, और जैन ट्रस्ट के द्वारा संचालित हाईस्कूल तक की शिक्षा के लिए स्कूल भी विद्यमान भी इस तीर्थ की शोभा को चार चाँद लगते हैं।
हम आप सभी को इस अतिशय क्षेत्र पर पधारने के लिए आमंत्रित करते हैं, ताकि आप स्वयं यहाँ की दिव्यता का अनुभव कर सकें और भगवान पार्श्वनाथ के आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमय बना सकें।