टोड़ी जी की शिक्षाएं: एक आदर्श जैन जीवनशैली

श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र, टोड़ी जी में सिर्फ ज्ञान ही नहीं, बल्कि उस ज्ञान को आचरण में लाने की व्यावहारिक शिक्षा भी दी जाती है। यहाँ दी जाने वाली शिक्षाएं एक आदर्श जैन की पहचान हैं, जो न केवल जैनों के लिए आवश्यक हैं, बल्कि अन्य लोगों के लिए भी अनुकरणीय हैं।

 

आहार शुद्धि: जीवन का आधार

 

  • रात्रि भोजन का त्याग: सूर्य के प्रकाश में ही भोजन करना और सूर्यास्त के बाद अन्न-जल का त्याग करना, स्वास्थ्य और अहिंसा की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ आचरण है।

  • अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग: एक सच्चे श्रावक को जमीन के नीचे उगने वाली वस्तुएं जैसे आलू, प्याज, लहसुन आदि, जो अनंत जीवों की हिंसा का कारण हैं, का पूर्ण रूप से त्याग करना चाहिए।

 

नित्य-नियम एवं आचरण

 

  • नित्य देव-दर्शन: बिना किसी के कहे, प्रतिदिन शुद्ध वस्त्र पहनकर मंदिर जाकर वीतरागी देव के दर्शन करना प्रत्येक श्रावक का परम कर्तव्य है।

  • बड़ों की विनय: परिवार और समाज में अपने से बड़ों का आदर-सम्मान और विनय करना, सुसंस्कृत जीवन का मूलमंत्र है।

 

मंदिर की वेश-भूषा: विनय का प्रतीक

 

मंदिर परमात्मा का घर है, जहाँ विनय और शुद्धि का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

  • सभी के लिए: मंदिर में प्रवेश करते समय हमेशा स्वच्छ और शुद्ध सूती वस्त्र ही धारण करने चाहिए।

  • महिलाओं के लिए: महिलाओं को पूजन और भक्ति के समय मुख्य रूप से केसरिया रंग की सूती साड़ी, चादर या ओढ़नी के साथ पहननी चाहिए।

  • पुरुषों के लिए:

    • सामान्य भक्ति के समय: सफेद कुर्ता-पजामा।

    • पूजन एवं अभिषेक के समय: केसरिया धोती-दुपट्टा पहनना अनिवार्य है।

यह सभी शिक्षाएं केवल नियम नहीं, बल्कि एक अनुशासित, सात्विक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत जीवन जीने का मार्ग हैं, जो हमें धर्म से जोड़कर हमारा कल्याण करती हैं।