भगवान श्री बाहुबली स्वामी: त्याग एवं तप की जीवंत प्रतिकृति
श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी, टोड़ी में प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम त्याग और तप की साक्षात प्रतिमूर्ति, भगवान श्री बाहुबली स्वामी के अति मनोहारी एवं शांत मुद्रा वाले दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है। यह विशाल प्रतिमा यहाँ आने वाले हर भक्त के लिए ध्यान और भक्ति-भावना का प्रमुख केंद्र है।
प्राण-प्रतिष्ठा एवं महत्व
इस भव्य प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा, टोड़ी जी में आयोजित हुए ऐतिहासिक विशाल पंचकल्याणक महामहोत्सव के पावन अवसर पर की गई थी। अपनी स्थापना के समय से ही, यह प्रतिमा मंदिर जी के मुख्य आकर्षणों में से एक रही है। भगवान बाहुबली की ध्यानस्थ मुद्रा को देखकर भक्तों का मन स्वतः ही सांसारिक चिंताओं से हटकर आत्म-शांति की ओर उन्मुख हो जाता है।
भगवान बाहुबली का परिचय
भगवान बाहुबली वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर, भगवान श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) जी के पुत्र थे। वे अपने सभी भाइयों में सबसे बलशाली होने के साथ-साथ अद्वितीय सौंदर्य और बाहुबल के स्वामी के रूप में जाने जाते थे।
सांसारिक साम्राज्य का त्याग कर, उन्होंने घोर तपस्या की और केवल ज्ञान प्राप्त कर एक महान आदर्श प्रस्तुत किया। जैन इतिहास में यह एक अद्वितीय तथ्य है कि उन्होंने अपने पिता तीर्थंकर ऋषभदेव और बड़े भाई चक्रवर्ती भरत से भी पहले मोक्ष को प्राप्त किया। उनकी प्रतिमा हमें वैराग्य, आत्म-नियंत्रण और कर्मों पर विजय पाने की प्रेरणा देती है।
यह प्रतिमा उसी तपस्या का प्रतीक है, जहाँ भगवान बाहुबली एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में अविचल ध्यान में लीन रहे। उनकी यह प्रतिकृति हमें याद दिलाती है कि सच्चा सुख और सच्ची विजय बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि अपनी आत्मा के भीतर ही है।